________________ 403 श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह भव की कथा से तत्कालीन ब्राह्मण संन्यासियों के अनेक प्रकार और उनकी चर्या आदि का पता लगता है / इस कथा में ब्राह्मणों के क्रिया-काण्ड और अनुष्ठानों से जैन व्रत नियमों की प्रधानता बताई गई है / बहुपुत्रिका के पूर्व भव सुभद्रा की कथा से यह ज्ञात होता है कि विना बाल बच्चों वाली स्त्रियों बच्चों के लिये कितनी तरसती हैं और अपने को हतभाग्या समझती हैं। बहुपुत्रिका के आगामी सोमा ब्राह्मणी के भव की कथा से यह मालूम होता है कि अधिक बाल बच्चों वाली स्त्रिय बाल बच्चों से कितनी घबरा उठती हैं / आदि आदि / (4) पुष्फ चूलिया:-चतुर्थ वर्ग पुष्फ चूलिया के दस अध्य यन हैं। (1) श्री। (2) ही। (3) धृति। (4) कीर्ति। (5) बुद्धि / (6) लक्ष्मी। (7) इला देवी। (8) सुरा देवी। (8) रस देवी। (10) गन्ध देवी / ये दस ही प्रथम सौधर्म देवलोक की देवियों हैं / इनके विमानों के वे ही नाम हैं जो कि देवियों के हैं / इस वर्ग में श्री देवी की कथा विस्तार से दी गई है। __ श्री देवी राजग्रह नगर के गुणशील चैत्य में विराजमान भगवान् महावीर स्वामी के दर्शनार्थ आई। उसने बत्तीस प्रकार के नाटक बताये और भगवान को