________________ 404 श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला वन्दना नमस्कार कर वापिस अपने स्थान पर चली गई। गौतम स्वामी के पूछने पर भगवान् ने श्री देवी का पूर्व भव बताया / पूर्व भव में यह राजगृह नगर के सुदर्शन गाथापति की पुत्री थी। इसका नाम भूता था। उसने भगवान् पार्श्वनाथ का उपदेश सुना और संसार से विरक्त होगई। उसने दीक्षा ली और पुष्प चूला आर्या की शिष्या हुई। किसी समय उसे सर्वत्र अशुचि ही अशुचि दिखाई देने लगी। फिर वह शौच धर्म वाली होगई और शरीर की शुश्रूषा करने लगी / वह हाथ, पैर आदि शरीर के अवयवों को, सोने बैठने आदि के स्थानों को बारबार धोने लगी और खूब साफ रखने लगी / पुष्प चूला आर्यो के मना करने पर भी वह उनसे अलग रहने लगी। इस तरह बहुत वर्ष तक दीक्षा पर्याय पाल कर अन्त समय में उमने आलोचना, प्रतिक्रमण किये बिना ही संथारा किया,और काल धर्म को प्राप्त हुई। भगवान् ने फरमाया यह करणी करके श्री देवी ने यह ऋद्धि पाई है और यहाँ से चव कर महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्धगति को प्राप्त होगी। शेष नव अध्ययन भी इसी तरह के हैं / इनके पूर्वभव के नगर, चैत्य, माता पिता और खुद के नाम संग्रहणी सूत्र के अनुसार ही हैं। सभी ने भगवान् पार्श्वनाथ के पास दीक्षा ली और पुष्प चूला आर्या की शिष्या हुई। सभी श्री देवी की तरह शौच और शुश्रषा धर्म वाली हो गई। यहाँ से चव कर ये सभी श्री देवी की तरह ही महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेंगी और सिद्ध पद को प्राप्त करेंगी।