________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह 366 (1) शिष्यों को शास्त्र ज्ञान का ग्रहण हो और इनके श्रुत का संग्रह हो, इस प्रयोजन से शिष्यों को वाचना देवे / (2) उपग्रह के लिये शिष्यों को वाचना देवे / इस प्रकार शास्त्र सिखाये हुए शिष्य आहार, पानी, वस्त्रादि शुद्ध गवेषणा द्वारा प्राप्त कर सकेंगे और संयम में सहायक होंगे / (3) सूत्रों की वाचना देने से मेरे कर्मों की निर्जरा होगी यह विचार कर वाचना देवे / (4) यह सोच कर वाचना देवे कि वाचना देने से मेरा शास्त्र ज्ञान स्पष्ट हो जायगा। (5) शास्त्र का व्यवच्छेद न हो और शास्त्र की परम्परा चलती रहे इस प्रयोजन से वाचना देवे / (ठाणांग 5 उद्देशा 3 सूत्र 468) ३८३--सूत्र सीखने के पांच स्थान: १-तत्त्वों के ज्ञान के लिये सूत्र सीखे / / २-तत्त्वों पर श्रद्धा करने के लिये सूत्र सीखे ३-चारित्र के लिये सूत्र सीखे / ४-पिध्याभिनिवेश छोड़ने के लिये अथवा दूसरे से छुड़वाने के लिये सूत्र सीखे / ५-सूत्र सीखने से यथावस्थित द्रव्य एवं पर्यायों का ज्ञान होगा इस विचार से सूत्र सीखे / (ठाणांग 5 उद्देशा 3 सूत्र 468) ३८४-निरयावलिका के पांच वर्ग:-- (1) निरयावलिका / (2) कप्प वडंसिया।