________________ 368 श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला है। इस प्रकार के वाक्य का प्रयोग निगमन कहलाता है / (रत्नाकरावतारिका परिच्छेद 3) ३८१-स्वाध्याय की व्याख्या और भेदः शोभन रीति से मर्यादा पूर्वक अस्वाध्याय काल का परिहार करते हुए शास्त्र का अध्ययन करना स्वाध्याय है। स्वाध्याय के पाँच भेदः (1) वाचना (2) पृच्छना / (3) परिवर्तना (4) अनुप्रेक्षा / (5) धर्म कथा। (1) वाचना:-शिष्य को सूत्र अर्थ का पढ़ाना वाचना है। (2) पृच्छनाः-चाचना ग्रहण करके संशय होने पर पुनः पूंछना पृच्छना है / या पहले सीखे हुए सूत्रादि ज्ञान में शंका होने पर प्रश्न करना पृच्छना है। (3) परिवर्तनाः-पढ़े हुए भूल न जाँय इस लिये उन्हें फेरना परिवर्तना है। (4) अनुप्रेक्षा:-सीखे हुए सूत्र के अर्थ का विस्मरण न हो जाय इस लिये उसका बार बार मनन करना अनुप्रेक्षा है / (5) धर्मकथा:--उपरोक्त चारों प्रकार से शास्त्र का अभ्यास करने पर भव्य जीवों को शास्त्रों का व्याख्यान सुनाना धर्म कथा है। (ठाणांग 5 उद्देशा 3 सूत्र 465) ३८२-सूत्र की वाचना देने के पाँच वोल यानि गुरु महाराज पाँच बोलों से शिष्य को सूत्र सिखावे