________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह 361 और इसी प्रकार तत्सम्बन्धी भिन्न भिन्न विषयों का विचार करना श्रुतज्ञान है। (3) अवधि ज्ञान:-इन्द्रिय तथा मन की सहायता विना, मर्यादा को लिये हुए रूपी द्रव्य का ज्ञान करना अवधि ज्ञान कहलाता है। (4) मनः पर्यय ज्ञान:-इन्द्रिय और मन की सहायता के विना ____ मर्यादा को लिये हुए संज्ञी जीवों के मनोगत भावों का जानना मनः पर्यय ज्ञान है। (5) केवल ज्ञानः-मति आदि ज्ञान की अपेक्षा विना, त्रिकाल एवं त्रिलोक वर्ती समस्त पदार्थों को युगपत् हस्तामलकवत् जानना केवल ज्ञान है। (ठाणांग 5 उद्देशा 3 सूत्र 463 ) (कर्म ग्रन्थ प्रथम भाग) (नंदी सूत्र टीका) 376- केवली के पाँच अनुत्तरः केवल ज्ञानी सर्वज्ञ भगवान् में पांच गुण अनुत्तर अर्थात् सर्वश्रेष्ठ होते हैं। (1) अनुत्तर ज्ञान / (2) अनुत्तर दर्शन / (3) अनुत्नर चारित्र। (4) अनुत्तर तप / (5) अनुत्तर वीर्य / केवली भगवान् के ज्ञानावरणीय एवं दर्शनावरणीय कर्म के क्षय हो जाने से केवलज्ञान एवं केवल दर्शन रूप अनुत्तर ज्ञान, दर्शन होते हैं। मोहनीय कर्म के क्षय होने से अनुत्तर