________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला इन पाँच प्रकार के वस्त्रों में से उत्सर्ग रूप से तो कपास और ऊन के बने हुए दो प्रकार के अल्प मूल्य के वस्त्र ही साधु के ग्रहण करने योग्य हैं। (ठाणांग 5 उद्देशा 3 सूत्र 446) ३७५-ज्ञान के पाँच मेदः (1) मति ज्ञान। (2) श्रुतज्ञान। (3) अवधि ज्ञान। (4) मनः पर्यय ज्ञान / (5) केवल ज्ञान / (1) मति ज्ञान (आभिनिबोधिक ज्ञान):--इन्द्रिय और मन की सहायता से योग्य देश में रही हुई वस्तु को जानने वाला ज्ञान मतिज्ञान (आभिनिबोधिक ज्ञान ) कहलाता है। (2) श्रुतज्ञान:-वाच्य-वाचक भाव सम्बन्ध द्वारा शब्द से सम्बद्ध अर्थ को ग्रहण कराने वाला इन्द्रिय मन कारणक ज्ञान श्रुतज्ञान है / जैसे इस प्रकार कम्बुग्रीवादि आकार वाली वस्तु जलधारणादि क्रिया में समर्थ है और घट शब्द से कही जाती है / इत्यादि रूप से शब्दार्थ की पर्यालोचना के बाद होने वाले त्रैकालिक सामान्य परिणाम को प्रधानता देने वाला ज्ञान श्रुत ज्ञान है। अथवा:___ मति ज्ञान के अनन्तर होने वाला, और शब्द तथा अर्थ की पर्यालोचना जिसमें हो ऐसा ज्ञान श्रुतज्ञान कहलाता है। जैसे कि घट शब्द के सुनने पर अथवा आँख से घड़े के देखने पर उसके बनाने वाले का, उसके रंग का