________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह 387 (5) अपरिश्रावी-सम्पूर्ण काय योग का निरोध कर लेने पर स्नातक निष्क्रिय हो जाता है और कर्म प्रवाह रुक जाता है। इस लिये वह अपरिश्रावी होता है। (ठाणांग 5 उद्देशा 3 सूत्र 445) (भगवती शतक 25 उद्देशा 6) ३७२-पांच प्रकार के श्रमणः पाँच प्रकार के साधु श्रमण नाम से कहे जाते है(१) निग्रन्थ / (2) शाक्य / (3) तापस। (4) गैरुक। (5) आजीविक। (1) निम्रन्थः-जिन-प्रवचन में उपदिष्ट पांच महाव्रत, पांच समिति, तीन गुप्ति आदि साधु क्रिया का पालन करने वाले जैन मुनि निम्रन्थ कहलाते हैं। (2) शाक्यः चुद्ध के अनुयायी साधु शाक्य कहलाते हैं। (3) तापसः-जटाधारी, जंगलों में रहने वाले संन्यासी तापस कहलाते हैं। (4) गैरुक-रुए रंग के वस्त्र पहनने वाले त्रिदण्डी साधु गैरुक कहलाते हैं। (5) आजीविक-गोशालक मत के अनुयायी साधु आजीविक कहलाते हैं। (प्रवचन सारोद्धार प्रथम भाग पृष्ठ 212) ३७३-चनीपक की व्याख्या और भेदः दूसरों के आगे अपनी दुर्दशा दिखाकर अनुकूल