________________ 388 श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला भाषण करने से जो द्रव्य मिलता है उसे वनी कहते हैं / वनी को भोगने वाला साधु वनीपक कहलाता है। अथवाः -- प्रायः दाता के माने हुए श्रमणादि का अपने को भक्त बता कर जो आहार मांगता है वह वनीपक कहलाता है। वनीपक के पाँच भेद(१) अतिथि वनीपक। (2) कृपण वनीपक / (3) ब्राह्मण वनीपक। (4) श्वा वनीपक / (5) श्रमण वनीपक। (1) अतिथि वनीपक:-भोजन के समय पर उपस्थित होने वाला मेहमान अतिथि कहलाता है / अतिथि-भक्त दाता के आगे अतिथिदान की प्रशंसा करके आहारादि चाहने वाला अतिथि वनीपक है। (2) कृपण वनीपक:-जो दाता कृपण, दीन, दुःखी पुरुषों का भक्त है अर्थात् ऐसे पुरुषों को दानादि देने में विश्वास करता है। उसके आगे कृपण दान की प्रशंसा करके आहारादि लेने वाला एवं भोगने वाला कृपण वनीपक है। (3) ब्रामण वनीपक:-जो दाता ब्राह्मणों का भक्त है / उसके आगे ब्राह्मण दान की प्रशंसा करके आहारादि लेने वाला एवं भोगने वाला ब्राह्मण वनीपक कहलाता है / (4) श्वा वनीपक-कुत्ते, काक, आदि को आहारादि देने में पुण्य समझने वाले दाता के आगे इस कार्य की प्रशंसा