________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह अथवाःसंज्वलन कषाय सहित होकर ज्ञान, दर्शन, चारित्र और लिङ्ग की विराधना करने वाले क्रमशः ज्ञान कुशील, दर्शन कुशील, चारित्र कुशील और लिङ्ग कुशील हैं / एवं मन से संज्वलन कषाय करने वाला यथासूक्ष्म कपाय कुशील है। लिङ्ग कुशील के स्थान में कहीं 2 तप कुशील है / ___ (ठाणांग 5 उद्देशा 3 सूत्र 445) ३७०-निर्ग्रन्थ के पाँच मेदः (1) प्रथम समय निग्रन्थ / (2) अप्रथम समय निम्रन्थ / (3) चरम समय निग्रन्थ / (4) अचरम समय निम्रन्थ / (5) यथासूक्ष्म निम्रन्थ / (1) प्रथम समय निर्ग्रन्थः -अन्तर्मुहूर्त प्रमाण निर्ग्रन्थ काल की ममय राशि में से प्रथम समय में वर्तमान निम्रन्थ प्रथम ममय निर्ग्रन्थ है। (2) अप्रथम समय निम्रन्थः-प्रथम समय के सिवा शेष समयों में वर्तमान निम्रन्थ अप्रथम समय निम्रन्थ है।। ये दोनों भेद पूर्वानुपूर्वी की अपेक्षा है / (3) चरम समय निम्रन्थः -अन्तिम समय में वर्तमान निम्रन्थ चरम समय निग्रन्थ है। (4) अचरम समय निर्ग्रन्थः-अन्तिम समय के सिवा शेष समयों में वर्तमान निर्ग्रन्थ अचरम समय निग्रन्थ है। ये दोनों भेद पश्चानुपूर्वी की अपेक्षा है।