________________ 384 श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला ३६६--कुशील के पाँच भेदः-प्रतिसेवना कुशील और कषाय कुशील के पाँच पाँच भेद हैं(१) ज्ञान कुशील (2) दर्शन कुशील (3) चारित्रकुशील (4) लिङ्गकुशील (5) यथासूक्ष्म कुशील ज्ञान, दर्शन, चारित्र और लिङ्ग से आजीविका कर इनमें दोष लगाने वाले क्रमशः प्रतिसेवना की अपेक्षा ज्ञान कुशील, दर्शन कुशील, चारित्र कुशील और लिङ्ग कुशील हैं। यथा सूक्ष्म कुशील:-यह तपस्वी है / इस प्रकार प्रशंसा से हर्षित होने वाला प्रतिसेवना की अपेक्षा यथा सूक्ष्म कुशील है / कपाय कुशील के भी ये ही पांच भेद हैं / इसका स्वरूप इस प्रकार है:(१) ज्ञान कुशीलः-संज्वलन क्रोधादि पूर्वक विद्यादि ज्ञान का प्रयोग करने वाला साधु ज्ञान कुशील है। (2) दर्शनकुशीलः-संज्वलन क्रोधादि पूर्वक दर्शन (दर्शन ग्रन्थ ) का प्रयोग करने वाला साधु दर्शन कुशील है। (3) चारित्र कुशील:--संज्वलन कषाय के आवेश में किसी को शाप देने वाला साधु चारित्र कुशील है / (4) लिङ्ग कुशीलः-संज्वलन कषाय वश अन्य लिङ्ग धारण करने वाला साधु लिङ्ग कुशील है। (5) यथा सूक्ष्म कुशीलः-मन से संज्वलन कषाय करने वाला साधु यथा सूक्ष्म कुशील है।