________________ अथ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह 383 अथवा उपरोक्त चारों भेदों में ही जो थोड़ी थोड़ी विराधना करता है वह यथासूक्ष्म पुलाक कहलाता है। (ठाणांग 5 उद्देशा 3 सुत्र 445) (भगवती शतक 25 उद्देशा६) ३६८-चकुश के पांच भेदः (1) आभोग बकुश। (2) अनाभोग बकुश / (3) संवृत बकुश। (4) असंवृत बकुश / (5) यथा सूक्ष्म बकुश। (1) आभोग बकुशः-शरीर और उपकरण की विभूषा करना साधु के लिए निषिद्ध है / यह जानते हुए भी शरीर और उपकरण की विभूषा कर चारित्र में दोष लगाने वाला साधु आभोग बकुश है। (2) अनाभोग बकुशः-अनजान में अथवा सहसा शरीर और उपकरण की विभूषा कर चारित्र को दूषित करने वाला साधु अनाभोग वकुश है। (3) संवृत बकुश:-छिप कर शरीर और उपकरण की विभूषा कर दोष सेवन करने वाला साधु संवृत बकुश है / (4) असंवृत बकुशः--प्रकट रीति से शरीर और उपकरण की विभूषा रूप दोष सेवन करने वाला साधु असंवृत बकुश है। (5) यथा सूक्ष्म बकुश:-मूल गुण और उत्तर गुण के सम्बन्ध में प्रकट या अप्रकट रूप से कुछ प्रमाद सेवन करने वाला, आँख का मैल आदि दूर करने वाला साधु यथा सूक्ष्म बकुश कहा जाता है। (ठाणांग 5 उद्देशा 3 सूत्र 445)