________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला (5) स्नातक:-शुक्लध्यान द्वारा सम्पूर्ण घाती कर्मों के समूह को क्षय करके जो शुद्ध हुए हैं वे स्नातक कहलाते हैं / सयोगी और अयोगी के भेद से स्नातक भी दो प्रकार के होते हैं। (ठाणांग 5 उद्देशा 3 सूत्र 445) (भगवती शतक 25 उद्देशा 6) ३६७-पुलाक ( प्रति सेवा पुलाक ) के पाँच भेदः (1) ज्ञान पुलाक / (2) दर्शन पुलाक / (3) चारित्र पुलाक। (4) लिङ्ग पुलाक / (5) यथा सूक्ष्म पुलाक। (1) ज्ञान पुलाक:--स्खलित, मिलित आदि ज्ञान के अतिचारों का सेवन कर संयम को असार करने वाला साधु ज्ञान पुलाक कहलाता है। (2) दर्शन पुलाक:-कुतीर्थ परिचय आदि समकित के अतिचारों का सेवन कर संयम को असार करने वाला साधु दर्शन पुलाक है। (3) चारित्र पुलाक:-मूल गुण और उत्तर गुणों में दोष लगा कर चारित्र की विराधना करने वाला साधु चारित्र पुलाक है। (4) लिङ्ग पुलाकः-शास्त्रों में उपदिष्ट साधु-लिङ्ग से अधिक धारण करने वाला अथवा निष्कारण अन्य लिङ्ग को धारण करने वाला साधु लिङ्ग पुलाक है। (5) यथा सूक्ष्म पुलाक:-कुछ प्रमाद होने से मन से अकल्पनीय ग्रहण करने के विचार वाला साधु यथा सूक्ष्म पुलाक है।