________________ 380 श्रो सेठिया जैन ग्रन्थमाला प्राप्त, संघादि के प्रयोजन से बल (सेना) वाहन सहित चक्रवर्ती आदि के मान को मर्दन करने वाली लब्धि के प्रयोग और ज्ञानादि के अतिचारों के सेवन द्वारा संयम को पुलाक की तरह निस्सार करने वाला साधु पुलाक कहा जाता है। पुलाक के दो भेद होते हैं(१) लब्धि पुलाक / (2) प्रति सेवा पुलाक / लब्धि का प्रयोग करने वाला साधु लब्धि पुलाक है और ज्ञानादि के अतिचारों का सेवन करने वाला साधु प्रति सेवा पुलाक है। (भगवती शतक 25 उद्देशा है) (2) बकुशः-बकुश शब्द का अर्थ है शबल अर्थात् चित्र वर्ण / शरीर और उपकरण की शोभा करने से जिसका चारित्र शुद्धि और दोषों से मिला हुआ अत एव अनेक प्रकार का है वह बकुश कहा जाता है। बकुश के दो भेद हैं(१) शरीर बकुश। (2) उपकरण वकुश / शरीर बकुशः-विभूषा के लिये हाथ, पैर, मुँह आदि धोने वाला, आँख, कान, नाक आदि अवयवों से मैल आदि दूर करने वाला, दाँत साफ करने वाला, केश सँवारने वाला, इस प्रकार कायगुप्ति रहित साधु शरीर-बकुश है। ___ उपकरण बकुशः-विभूषा के लिये अकाल में चोलपट्टा आदि धोने वाला, धूपादि देने वाला, पात्र दण्ड आदि को तैलादि लगा कर चमकाने वाला साधु उपकरण