________________ 378 श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला सम्यक् रूपेण पक्षपात रहित व्यवहारों का प्रयोग करता हुआ साधु भगवान् की आज्ञा का आराधक होता है। (ठाणांग 5 उद्देशा 2 सूत्र 421) (व्यवहार सूत्र) (भगवती शतक 8 उद्देशा 8) ३६४--पाँच प्रकार के मुण्ड: मुण्डन शब्द का अर्थ अपनयन अर्थात् हटाना, दूर करना है / यह मुण्डन द्रव्य और भाव से दो प्रकार का है / शिर से बालों को अलग करना द्रव्य मुण्डन है और मन से इन्द्रियों के विषय शब्द, रूप, रस और गन्ध, स्पर्श, सम्बन्धी राग द्वेष और कषायों को दूर करना भाव मुण्डन है। इस प्रकार द्रव्य मुण्डन और भाव मुण्डन धर्म से युक्त पुरुष मुण्ड कहा जाता है। पाँच मुण्ड(१) श्रोन्द्रिय मुण्ड। (2) चक्षुरिन्द्रिय मुण्ड / (3) घ्राणेन्द्रिय मुण्ड। (4) रसनेन्द्रिय मुण्ड / (5) स्पर्शनेन्द्रिय मुण्ड। (1) श्रोत्रेन्द्रिय मुण्ड:-श्रोत्रेन्द्रिय के विषय रूप मनोज्ञ एवं अमनोज्ञ शब्दों में राग द्वेष को हटाने वाला पुरुष श्रोत्रेन्द्रिय मुण्ड कहा जाता है। इसी प्रकार चक्षुरिन्द्रिय मुण्ड आदि का स्वरूप भी समझना चाहिये / ये पांचों भाव मुण्ड हैं। (ठाणांग 5 सूत्र 443)