________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह 366 जिसे कल्पता है वह तआत संसृष्ट कल्पिक है। ये पांचों प्रकार भी अभिग्रह विशेष धारी साधु के ही जानने चाहिये। (ठाणांग 5 उद्देशा 1 सूत्र 366) ३५४-भगवान महावीर से उपदिष्ट एवं अनुमत पांच स्थान: (1) औपनिधिक (2) शुद्धैषणिक (3) संख्या दत्तिक (4) दृष्ट लामिक (5) पृष्ट लामिक (1) प्रोपनिधिकः-गृहस्थ के पास जो कुछ भी आहारादि रखा है उसी की गवेषणा करने वाला साधु औपनिधिक कहलाता है। शुद्धषणिक-शुद्ध अर्थात शंकितादि दोष बर्जित निर्दोष एषणा अथवा संसृष्टादि सात प्रकार की या और किसी एषणा द्वारा आहार की गवेषणा करने वाला साधु शुद्धषणिक कहा जाता है। (3) संख्यादत्तिकः-दत्ति (दात ) की संख्या का परिमाण करके आहार लेने वाला साधु संख्या दत्तिक कहा जाता है साधु के पात्र में धार टूटे विना एक बार में जितनी भिक्षा आ जाय वह दत्ति यानि दात कहलाती है। (4) दृष्टलाभिक:-देखे हुए आहार की ही गवेषणा करने वाला साधु दृष्ट लामिक कहलाता है। (5) पृष्ट लाभिक:-'हे मुनिराज ! क्या आपको मैं आहार हूँ !! इस प्रकार पूछने वाले दाता से ही आहार की गवेषणा करने वाला साधु पृष्ट लाभिक कहलाता है।