________________ 370 श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला ये भी अभिग्रह धारी साधु के पाँच प्रकार हैं। 355 -भगवान् महावीर से उपदिष्ट एवं अनुमत पाँच स्थान (1) आचाम्लिक (2) निर्विकृतिक (3) पूवार्धिक (4) परिमित पिण्डपातिक (5) भिन्न पिण्डपातिक (1) आचाम्लिक (आयंबिलिए):--आचाम्ल (आयंबिल) तप करने वाला साधु आचाम्लिक कहलाता है / (2) निर्विकृतिक (णिवियते):-धी आदि विगय का त्याग करने वाला साधु निर्विकृतिक कहलाता है / (3) पूर्वाद्धिक (पुरिमड्ढी):-पुरिमड्ढ अर्थात् प्रथम दो पहर तक का प्रत्याख्यान करने वाला साधु पूर्वाद्धिक कहा जाता है। (4) परिमित पिण्डपातिकः द्रव्यादि का परिमाण करके परि मित आहार लेने वाला साधु परिमित पिण्डपातिक कहलाता है। (3) भिन्न पिण्डपातिकः-पूरी वस्तु न लेकर टुकड़े की हुई वस्तु को ही लेने वाला साधु भिन्न पिण्डपातिक कहलाता है। (ठाणांग 5 उद्देशा 1 सूत्र 366) ३५६-भगवान महावीर से उपदिष्ट एवं अनुमत पाँच स्थानः (1) अरसाहार (2) विरसाहार। (3) अन्ताहार (4) प्रान्ताहार। (5) लूक्षाहार।