________________ 366 श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला सरलता रखना सत्य है। (2) संयम:-सर्व सावध व्यापार से निवृत्त होना संयम है / पाँच आश्रव से निवृत्ति, पाँच इन्द्रिय का निग्रह, चार कपाय पर विजय और तीन दण्ड से विरति / इस प्रकार सतरह भेद वाले संयम का पालन करना संयम है / (3) तपः-जिस अनुष्ठान से शरीर के रस, रक्त आदि सात धातु और आठ कर्म तप कर नष्ट हो जाय वह तप है। यह तप बाह्य और आभ्यन्तर के भेद से दो प्रकार का है। दोनों के छः छः भेद हैं। (4) त्यागः-कर्मों के ग्रहण कराने वाले बाह्य कारण माता, पिता, धन, धान्यादि तथा आभ्यन्तर कारण राग, द्वेष, कषाय आदि मर्व सम्बन्धों का त्याग करना, त्याग है। अथवाःसाधुओं को वस्त्रादि का दान करना त्याग है। अथवा: शक्ति होते हुए उद्यत विहारी होना, लाभ होने पर संभोगी साधुओं को आहारादि देना अथवा अशक्त होने पर यथाशक्ति उन्हें गृहस्थों के घर बताना और इसी प्रकार उद्यत विहारी, असंभोगी साधुओं को श्रावकों के घर दिखाना त्याग है। नोटः-हेम कोष में दान का अपर नाम त्याग है। (5) ब्रह्मचर्यवासः-मैथुन का त्याग कर शास्त्र में बताई हुई ब्रह्मचर्य की नव गुप्ति (बाड़) पूर्वक शुद्ध ब्रह्मचर्य का पालन