________________ 365 श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह (1) शान्ति (2) मुक्ति / (3) आर्जव (4) मार्दव / (5) लाघव / (1) क्षान्तिः-शक्त अथवा अशक्त पुरुष के कठोर भाषणादि को सहन कर लेना तथा क्रोध का सर्वथा त्याग करना शान्ति है। (2) मुक्तिः--सभी वस्तुओं में तृष्णा का त्याग करना, धर्मो पकरण एवं शरीर में भी ममत्व भाव न रखना, सब प्रकार के लोभ को छोड़ना मुक्ति है। (3) आर्जव:-मन, वचन, काया की सरलता रखना और माया का निग्रह करना आर्जव है। (4) मार्दवः--विनम्र वृत्ति रखना, अभिमान न करना मार्दव (5) लाघवः-द्रव्य से अल्प उपकरण रखना एवं भाव से तीन गारव का त्याग करना लाघव है।। (ठाणांग 5 उद्देशा 1 सूत्र 366) (धर्मसंग्रह अधिकार 3 पृष्ठ 127) (प्रवचन सारोद्धार पूर्वभाग पृष्ठ 134) ३५१-भगवान् से उपदिष्ट एवं अनुमत पाँच स्थान:(१) सत्य (2) संयम / (3) तप (4) त्याग / (5) ब्रह्मचर्य / (1) सत्यः -सावध अर्थात् असत्य, अप्रिय, अहित वचन का त्याग करना, यथार्थ भाषण करना, मन वचन काया की