________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला चाहिये क्योंकि उस समय वन्दना करने से आहार में अन्तराय पड़ती है। (5) मल मूत्र त्यागते समय भी गुरु महाराज को वन्दना न करनी चाहिये क्योंकि उस समय वन्दना करने से वे लज्जित हो सकते हैं। या और कोई दोष उत्पन्न हो सकता है। (प्रवचन सारोद्धार वन्दना द्वार पृष्ठ 271) (हरिभद्रीयावश्यक वन्दनाध्ययन पृष्ठ 540) ३४६-पास जाकर वन्दना योग्य समय के पाँच बोल(१) गुरु महाराज प्रसन्न चित हों, प्रशान्त हों अर्थान् व्याख्या नादि में व्यग्र न हों। (2) गुरु महाराज आसन पर बैठे हों। (3) गुरु महाराज क्रोधादि प्रमादवश न हों। (4) शिष्य के 'वन्दना करना चाहता हूँ' ऐमा पूछने पर गुरु महाराज 'इच्छा हो' मा कहते हुए बन्दना स्वीकार करने में सावधान हों। (5) ऐसे गुरु महाराज से आज्ञा प्राप्त की हो। (हरिभद्रीयावश्यक वन्दनाध्ययन पृष्ठ 541) (प्रवचन सारोद्धार पृष्ठ 271 वन्दना द्वार) ३५०-भगवान् महावीर से उपदिष्ट एवं अनुमत पाँच बोलः पांच बोलों का भगवान् महावीर ने नाम निर्देश पूर्वक स्वरूप और फल बताया है / उन्होंने उनकी प्रशंसा की है और आचरण करने की अनुमति दी है। वे बोल निम्न प्रकर हैं: