________________ 160 श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला कहने पर उनके सामने अनिष्ट वचन कहता है और गुरु के कहे अनुसार नहीं करता। इत्यादि प्रकार से साधु की समाचारी में दोप लगाने वाला देश अवसन्न कहा जाता है। (3) कुशीलः-कुत्सित अर्थात् निन्द्य शील-आचार वाले साधु को कुशील कहते हैं। कुशील के तीन भेदः ज्ञान कुशील, दर्शन कुशील, चारित्र कुशील / ज्ञान कुशीलः--काल, विनय इत्यादि ज्ञान के प्राचार की विराधना करने वाला ज्ञान कुशील कहा जाता है / दर्शन कुशीलः निःशंकित, निष्कांक्षित आदि समकित के आठ आचार की विराधना करने वाला दर्शन कुशील कहा जाता है। चारित्र कुशीलः-कौतुक,भूतिकर्म,प्रश्नाप्रश्न, निमित्त,आजीव, कल्ककुरुका, लक्षण, विद्या, मन्त्रादि द्वारा आजीविका करने वाला साधु चारित्र कुशील कहा जाता है। कौतुकादि का लक्षण इस प्रकार है / कौतुकः-सौभाग्यादि के लिए स्त्री आदि का विविध औषधि मिश्रित जल से स्नान आदि कौतुक कहा जाता है / अथवा कौतुक आश्चर्य को कहते हैं। जैसे मुख में गोले डाल कर नाक या कान आदि से निकालना तथा मुख से अग्नि निकालना आदि / भूतिकर्मः-ज्वर आदि रोग वालों को मंत्र की हुई भस्मी (राख) देना भूतिकर्म है।