________________ 354 श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला ___ रहते हुए भी साधु के आचार का अतिक्रमण नहीं करते। (5) आचार्य, उपाध्याय उपाश्रय से बाहर एक या दो रात तक अकेले रहते हुए भी साधु के प्राचार का अतिक्रमण नहीं करते। ३४३-आचार्य, उपाध्याय के गण से निकलने के पाँच कारण:___ पाँच कारणों से आचार्य, उपाध्याय गच्छ से निकल (1) गच्छ में साधुओं के दुर्विनीत होने पर प्राचार्य, उपाध्याय "इस प्रकार प्रवृत्ति करो, इस प्रकार न करो" इत्यादि प्रवृत्ति निवृत्ति रूप, आज्ञा धारणा यथायोग्य न प्रवर्ता सकें। (2) आचार्य, उपाध्याय पद के अभिमान से रत्नाधिक (दीक्षा में बड़े) साधुओं की यथायोग्य विनय न करें तथा साधुओं में छोटों से बड़े साधुओं की विनय न करा सकें। (3) आचार्य, उपाध्याय जो सूत्रों के अध्ययन, उद्देश आदि धारण किये हुए हैं उनकी यथावसर गण को वाचना न दें। वाचना न देने में दोनों ओर की अयोग्यता संभव है। गच्छ के साधु अविनीत हो सकते हैं तथा आचार्य, उपा ध्याय भी सुखासक्त तथा मन्दबुद्धि हो सकते हैं। (4) गच्छ में रहे हुए आचार्य,उपाध्याय अपने या दूसरे गच्छ की साध्वी में मोहवश आसक्त हो जाय / (5) आचार्य, उपाध्याय के मित्र या ज्ञाति के लोग किसी कारण