________________ 350 श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला भगवान् की आज्ञा का अतिक्रमण नहीं करते। (1) दुर्मिक्षादि कारणों से कोई साधु, साध्वी एक ऐसी लम्बी अटवी में चले जाय, जहाँ बीच में न ग्राम हो और न लोगों का आना जाना हो / वहाँ उस अटवी में साधु साध्वी एक जगह रह सकते हैं और कायोत्सर्ग आदि कर सकते हैं। (2) कोई साधु साध्वी, किसी ग्राम, नगर या राजधानी में आये हों। वहाँ उनमें से एक को रहने के लिये जगह मिल जाय और दूसरों को न मिले / ऐसी अवस्था में साधु, साध्वी एक जगह रह सकते हैं और कायोत्सर्ग आदि कर सकते हैं। (3) कोई साधु या साध्वी नाग कुमार, सुवर्ण कुमार आदि के देहरे में उतरे हों / देहरा सूना हो अथवा वहाँ बहुत से लोग हों और कोई उनके नायक न हो तो साध्वी की रक्षा के लिये दोनों एक स्थान पर रह सकते हैं और कायोत्सर्ग आदि कर सकते हैं। (4) कहीं चोर दिखाई दें और वे वस्त्र छीनने के लिये साध्वी, को पकड़ना चाहते हों तो साध्वी की रक्षा के लिये साधु साध्वी एक स्थान पर रह सकते हैं और कायोत्सर्ग, स्वा ध्याय आदि कर सकते हैं। (5) कोई दुराचारी पुरुष साध्वी को शील भ्रष्ट करने की इच्छा से पकड़ना चाहे तो ऐसे अवसर पर साध्वी की रक्षा के