________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह 351 लिये साधु साध्वी एक स्थान पर रह सकते हैं और स्वाध्यायादि कर सकते हैं। (ठाणांग 5 उद्देशा 2 सूत्र 417) ३४०-साध के द्वारा साध्वी को ग्रहण करने या सहारा देने के पाँच बोल: पाँच बोलों से साधु साध्वी को ग्रहण करने अथवा सहारा देने के लिये उसका स्पर्श करे तो भगवान् की आज्ञा का उल्लंघन नहीं करता। (1) कोई मस्त सांड आदि पशु या गीध आदि पक्षी साध्वी को मारते हों तो साधु, साध्वी को बचाने के लिए उसका स्पर्श कर सकता है। (2) दुर्ग अथवा विषम स्थानों पर फिसलती हुई या गिरती हुई साध्वी को बचाने के लिये साधु उसका स्पर्श कर सकता (3) कीचड़ या दलदल में फँसी हुई अथवा पानी में बहती हुई साध्वी को साधु निकाल सकता है / (4) नाव पर चढ़ती हुई या उतरती हुई साध्वी को साधु सहारा दे सकता है। (5) यदि कोई साध्वी राग, भय या अपमान से शून्य चित्त वाली हो, सन्मान से हर्षोन्मत्त हो, यक्षाधिष्ठित हो, उन्माद वाली हो, उसके ऊपर उपसर्ग आये हों, यदि वह कलह करके खमाने के लिये आती हो, परन्तु पछतावे और