________________ 346 श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह में रहे हुए राजा को या अधिकार प्राप्त रानी को मालूम कराने के लिये मुनि राजा के अन्तःपुर में प्रवेश कर सकते हैं। (2) पडिहारी (कार्य समाप्त होने पर वापिस करने योग्य) पाट, पाटले, शय्या, संथारे को वापिस देने के लिये मुनि राजा के अन्तःपुर में प्रवेश करे। क्योंकि जो वस्तु जहाँ से लाई गई है उसे वापिस वहीं सौंपने का साधु का नियम है। पाट, पाटलादि लेने के लिये अन्तःपुर में प्रवेश करने का भी इसी में समावेश होता है। क्योंकि ग्रहण करने पर ही वापिस करना सम्भव है। (3) मतवाले दुष्ट हाथी, घोड़े सामने आरहे हों उनसे अपनी रक्षा के लिये साधु राजा के अन्तःपुर में प्रवेश कर सकता है। (4) कोई व्यक्ति अकस्मात् या जबर्दस्ती से भुजा पकड़ कर साधु को राजा के अन्तःपुर में प्रवेश करा देवे / (5) नगर से बाहर आराम या उद्यान में रहे हुए साधु को राजा का अन्तःपुर (अन्तेउर ) वर्ग चारों तरफ से घेर कर बैठ जाय। (ठाणांग 5 उद्देशा 2 सूत्र 415) ३३६-साधु साध्वी के एकत्र स्थान, शय्या, निषद्या के पाँच बोल:-. उत्सर्ग रूप में साधु, साध्वी का एक जगह काय्योत्सर्ग करना, स्वाध्याय करना, रहना, सोना आदि निषिद्ध है। परन्तु पाँच बोलों से साधु, साध्वी एक जगह कायोत्सर्ग, स्वाध्याय करें तथा एक जगह रहें और शयन करें तो वे