________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला आचार्यादि से ग्रहण न किया गया तो उसका विच्छेद हो जायगा / यह सोच कर उसे ग्रहण करने के लिये साधु साध्वी उक्त काल में भी ग्रागानुग्राम विहार कर सकते हैं / (2) दर्शनार्थी होने से साधु साध्वी विहार कर सकते हैं / जैसे कोई दर्शन की प्रभावना करने वाले शास्त्र ज्ञान की इच्छा से विहार करे। (3) चारित्रार्थी होने से साधु साध्वी विहार कर सकते हैं। जैसे कोई क्षेत्र अनेषणा, स्त्री आदि दोषों से दूषित हो तो चारित्र की रक्षा के लिये साधु साध्वी विहार कर सकते हैं। (4) आचार्य उपाध्याय काल कर जाँय तो गच्छ में अन्य आचार्यादि के न होने पर दूसरे गच्छ में जाने के लिये साधु साध्वी विहार कर सकते हैं। (5) वर्षा क्षेत्र में बाहर रहे हुए आचार्य, उपाध्यायादि की वैयावृत्त्य के लिये आचार्य महाराज भेजें तो साधु विहार कर सकते हैं। (ठाणांग 5 उद्देशा 2 सूत्र 413) / ३३८-राजा के अन्तःपुर में प्रवेश करने के पाँच कारण: पाँच स्थानों से राजा के अन्तःपुर में प्रवेश करता हुआ श्रमण निम्रन्थ साधु के आचार या भगवान् की आज्ञा का उल्लकन नहीं करता। (1) नगर प्राकार से घिरा हुआ हो और दरवाजे बन्द हों। इस कारण बहुत से श्रमण, माहण,याहार पानी के लिये न नगर से बाहर निकल सकते हों और न प्रवेश ही कर सकते हों। उन श्रमण, माहण आदि के प्रयोजन से अन्तःपुर