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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
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जाता है । उसी प्रकार उक्त राग रुपी अग्नि से चारित्र रुपी इन्धन जल कर कोयले की तरह हो जाता है । अर्थात् राग से चारित्र का नाश हो जाता है । (४) धूमः -- विरस आहार करते हुए आहार या ? दाता की द्वेषवश निन्दा करना धूम दोष है । यह द्वेषभाव साधु चारित्र को जला कर सधूम काष्ठ की तरह कलुषित करने वाला है ।
(५) अकारण : - साधु को छः कारणों से आहार करने की आज्ञा है । इन छः कारणों के मित्रा बल, वीर्य्यादि की वृद्धि के लिए आहार करना कारण दोष है ।
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हार के छः कारण ये हैं:
१ - क्षुधा वेदनीय को शान्त करने के लिए ।
२ - साधुओं की वैयावृत्य करने के लिए ।
४ - संयम निभाने के लिये ।
५- दश प्राणों की रक्षा के लिये ।
३ - ईर्ष्या समिति शोधने के लिए |
६ - स्वाध्याय, ध्यान आदि करने के लिये ।
(उत्तराध्ययन अध्ययन २६ गाथा ३२ )
( धर्म संग्रह अधिकार ३ गाथा २३ की टीका ) ( पिण्ड नियुक्ति गाथा ) ३३१—छनस्थ के परिषह उपसर्ग सहने के पाँच स्थान:- पाँच बोलों की भावना करता हुआ छनस्थ साधु उदय में आये हुए परिषह उपमर्गों को सम्यक प्रकार से निर्भय हो कर अदीनता पूर्व सहे, खमे और परिपह उपसर्गों से विचलित न हो ।