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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
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( ४ ) तप आचार --इच्छा निरोध रूप अनशनादि तप का सेवन करना तप आचार है ।
(५) वीर्याचार - अपनी शक्ति का गोपन न करते हुए धर्मकार्यों में यथाशक्ति मन, वचन, काया द्वारा प्रवृत्ति करना चार है ।
( ठाणांग ५ उद्देशा २ सूत्र ४३२ ) ( धर्मसंग्रह अधिकार ३ पृष्ठ १४० )
३२५ -- चार प्रकल्प के पाँच प्रकार-
आचारांग नामक प्रथम अङ्ग के निशीथ नामक अध्ययन को चार प्रकल्प कहते हैं । आचारांग सूत्र की पंचम चूलिका है। हैं। इसमें पाँच प्रकार के प्रायश्चित्तों का वर्णन है। इसी लिये हैं । वे ये हैं
इसके पाँच प्रकार कहे जाते
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(१) मासिक उद्घातिक । (३) चौमासी उद्घातिक ।
(२) मासिक अनुद्घातिक । (४) चौमासी अनुद्घातिक । (५) आरोपणा ।
निशीथ अध्ययन इसके बीस उद्देशे
(१) मासिक उद्घातिकः उद्घात अर्थात् विभाग करके जो प्रायश्चित्त दिया जाता है वह उद्घातिक प्रायश्चित है । एक मास का उद्घातिक प्रायश्चित्त मासिक उद्घातिक है । इसी को लघु मास प्रायश्चित्त भी कहते हैं ।
मास के आधे पन्द्रह दिन, और मासिक प्रायश्चित्त के पूर्व वर्ती पच्चीस दिन के आधे १२|| दिन इन दोनों को जोड़ने से २७|| दिन होते हैं। इस प्रकार भाग करके