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ओ सेठिया जैन प्रन्थमाला जो एक मास का प्रायश्चित दिया जाता है वह मासिक
उद्घातिक या लघु मास प्रायश्चित्त है । (२) मासिक अनुद्घातिक-जिम प्रायश्चित का भाग न हो यानि
लघुकरण न हो वह अनुद्घातिक है । अनुद्घातिक प्रायश्चित्त को गुरु प्रायश्चित्त भी कहते हैं । एक मास का
गुरु प्रायश्चित्त मासिक अनुद्घातिक प्रायश्चित्त कहलाता है । (३) चौमासी उद्घातिक-चार मास का लघु प्रायश्चित्त चौमासी
उद्घातिक कहा जाता है। (४) चौमासी अनुद्घातिकः-चार माम का गुरु प्रायश्चित्त चौमामी अनुद्घातिक कहा जाता है।
दोषों के उपयोग, अनुपयोग तथा आमक्ति पूर्वक सेवन की अपेक्षा तथा दोपों की न्यूनाधिकता से प्रायश्चित्त भी जघन्य,मध्यम और उत्कृष्ट रूप से दिया जाता है। प्रायश्चित्त रूप में तप भी किया जाता है। दीक्षा का छेद भी होता
है। यह सब विस्तार छेद सूत्रों से जानना चाहिये। (५) आरोपणा-एक प्रायश्चित्त के ऊपर दूसरा प्रायश्चित्त चढ़ाना
आरोपणा प्रायश्चित्त है । तप प्रायश्चित्त छः मास तक ऊपग उपरी दिया जा सकता है । इसके आगे नहीं।
(ठाणांग ५ उद्देशा २ सूत्र ४३३ ) ३२६-आगेपणा के पांच भेदः
(१) प्रस्थापिता। (२) स्थापिता । (३) कृत्ला ।
(४) अकृत्ला । (५) हाड़ाहड़ा।