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श्री सठिया जैन ग्रन्थमाला लघुनीत, बड़ीनीत, थूक, कफ, नासिका मल और मैलादि को निजीव स्थण्डिल में उपयोग पूर्वक परिठवना उच्चार प्रस्रवण खेल सिंघाण जल्ल परिस्थापलिका समिति है।
(समवायांग ५) (ठाणांग ५ उहेशा ३ सूत्र ४५७) (धर्म संग्रह अधिकार ३ पृष्ठ १३०)
(उत्तगध्ययन सूत्र अध्ययन २४) ३२४-आचार पाँच:--मोक्ष के लिए किया जाना वाला ज्ञानादि आसेवन रूप अनुष्ठान विशेष प्राचार कहलाता है।
अथवा:गुण वृद्धि के लिए किया जाने वाला आचरण आचार कहलाता है।
अथवाः-- पूर्व पुरुषों से आचरित ज्ञानादि आसेवन विधि को आचार कहते हैं। आचार के पाँच भेदः
(१) ज्ञानाचार। (२) दर्शनाचार। (३) चरित्राचार । (४) तप आचार |
(५) वीर्याचार । (१) ज्ञानाचारः-सम्यक् तत्व का ज्ञान कराने के कारण भूत
श्रुतज्ञान की आराधना करना ज्ञानाचार है।। (२) दर्शनाचार-दर्शन अर्थात् सम्यक्त्व का निःशंकितादि रूप
से शुद्ध आराधना करना दर्शनाचार है। (३) चारित्राचार ज्ञान एवं श्रद्धापूर्वक सर्व सावद्य योगों का
त्याग करना चारित्र है । चारित्र का सेवन करना चारित्राचार है।