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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह ३३१ (५) उच्चार प्रस्रवण खेल सिंघाण जल्ल परिस्थापनिका
समिति । (१) ईर्या समितिः--ज्ञान, दर्शन एवं चारित्र के निमित्त श्राग
मोक्त काल में युग परिमाण भूमि को एकाग्र चित्त से देखते हुए राजमार्ग आदि में यतना पूर्वक गमनागमन करना
ईर्या समिति है। (२) भाषा समितिः-यतना पूर्वक भाषण में प्रवृत्ति करना
अर्थात् आवश्यकता होने पर भाषा के दोषों का परिहार करते हुए सत्य, हित, मित और असन्दिध वचन कहना
भाषा समिति है। ३) एषणा समितिः- गवेषण, ग्रहण और ग्रास सम्बन्धी एषणा
के दोषों से अदृषित अत एव विशुद्ध आहार पानी, रजोहरण, मुखवस्त्रिका आदि औधिक उपधि और शय्या, पाट पाटलादि औपग्रहिक उपधि का ग्रहण करना एपणा
समिति है। नोट:-गवेपणैषणा, ग्रहणैषणा और ग्रासैषणा का स्वरूप
६३ वें बोल में दे दिया गया है । (४) आदान भंड मात्र निक्षेपणा समितिः--आसन, संस्ता
रक, पाट, पाटला, वस्त्र, पात्र, दण्डादि उपकरणों को उपयोग पूर्वक देख कर एवं रजोहरणादि से पूंज कर लेना एवं उपयोग पूर्वक देखी और पूजी हुई भूमि पर
रखना आदान भंड मात्र निक्षेपणा समिति है । (५) उच्चार प्रस्रवण खेल सिंघाण जल्ल परिस्थापनिका
समितिः-स्थण्डिल के दोषों को वर्जते हुए परिठवने योग्य