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श्री सठिया जैन ग्रन्थमाला (४) मथुन विरमण महाव्रत ।
(५) परिग्रह विरमण महावन । (१) प्राणातिपात विग्मण महावतः-प्रमाद पूर्वक सूक्ष्म और
बादर, त्रम और स्थावर रूप समस्त जीवों के पांच इन्द्रिय, मन, वचन, काया, श्वासोच्छवाम और आयु रूप दश प्राणों में से किसी का अतिपात (नाश) करना प्राणातिपात है । मम्मग्ज्ञान एवं श्रद्धापूर्वक जीवन पर्यन्त प्राणातिपात से तीन करण तीन योग से निवृत होना प्राणानिपात
विग्मण रूप प्रथम महावन है। (२) मृपावाद विग्मण महाव्रत:--प्रियकारी, पथ्यकारी एवं सत्य
वचन को छोड कर कपाय, भय, हास्य आदि के वश असन्य, अप्रिय, अहितकारी वचन कहना मृपावाद है । सूम, वादर के भेद से अमत्य वचन दो प्रकार का है। सद्भाव प्रतिपेध, असद्भावोद्भावन, अर्थान्तर और गर्दा के
मेद से असन्य वचन नार प्रकार का भी है । नोट:--अमत्य वचन के चार भेद और उनकी व्याख्या बोल
नम्बर २७० दे दी गई है। ___चोर को चोर कहना, कोड़ी को कोही कहना, काणे को काणा कहना आदि अप्रिय वचन हैं। क्या जंगल में तुमने मृग देखे ? शिकारियों के यह पूछने पर मृग देखने वाले पुरुष का उन्हें विधि रूप में उत्तर देना अहित वचन है। उक्त अप्रिय एवं अहित वचन व्यवहार में सत्य होने पर भी पर पीडाकारी होने से एवं प्राणियों की हिंसा