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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह ३१७ सामायिक के दो भेद-इत्वर कालिक सामायिक और
यावत्कथिक सामायिक । इत्तरकालिक सामायिक--इत्वर काल का अर्थ है अल्प काल
अर्थात् भविष्य में दूसरी बार फिर सामायिक व्रत का व्यपदेश होने से जो अल्प काल की सामायिक हो, उसे इत्वरकालिक सामायिक कहते हैं। पहले एवं अन्तिम ती कर भगवान् के तीर्थ में जब तक शिष्य में महाव्रत का आरोपण नहीं किया जाता तब तक उस शिष्य के इत्वर कालिक सामामिक समझनी चाहिये।। यावत्कथिक सामायिक :-यावजीवन की सामायिक यावत्कथिक सामायिक कहलाती है । प्रथम एवं अन्तिम तीर्थकर भगवान् के सिवा शेष बाईस तीर्थंकर भगवान् एवं महाविदेह क्षेत्र के तीर्थंकरों के साधुओं के यावत्कथिक सामायिक होती है । क्योंकि इन तीर्थंकरों के शिष्यों को
दूसरी बार सामायिक व्रत नहीं दिया जाता। (२) छेदोपस्थापनिक चारित्र--जिस चारित्र में पूर्व पर्याय का
छेद एवं महाव्रतों में उपस्थापन-आरोपण होता है उसे छेदोपस्थापनिक चारित्र कहते हैं ।
अथवाः-- पूर्व पर्याय का छेद करके जो महाव्रत दिये जाते हैं उसे छेदोपस्थापनिक चारित्र कहते हैं ।
यह चारित्र भरत, ऐरावत क्षेत्र के प्रथम एवं चरमतीर्थंकरों के तीर्थ में ही होता है शेष तीर्थंकरों के तीर्थ में नहीं होता ।