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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला अन्य जन्म में ग्रहण किये हुए कर्म संचय को दूर करने के लिये मोक्षाभिलाषी आत्मा का सर्व सावद्य योग
से निवृत्त होना चारित्र कहलाता है। चारित्र के पांच भेदः--
(१) सामायिक चारित्र, (२) छेदोपस्थापनिक चारित्र । (३) परिहार विशुद्धि चारित्र, (४) सूक्ष्मम्पराय चारित्र ।
(५) यथाख्यातचारित्र । ( १ ) मामायिक चारित्र-सम अर्थात् राग द्वेश रहित आत्मा
के प्रतिक्षण अपूर्व अपूर्व निर्जरा से होने वाली आत्म विशुद्धि का प्राप्त होना सामायिक है।
भवाटवी के भ्रमण से पैदा होने वाले क्लेश को प्रतिक्षण नाश करने वाली, चिन्तामणि, कामधेनु एवं कल्प वृक्ष के सुखों का भी तिरस्कार करने वाली, निरुपम सुख देने वाली एसी ज्ञान, दर्शन, चारित्र पर्यायों को प्राप्त कराने वाले, राग द्वेश रहित आत्मा के क्रियानुष्ठान को सामायिक चारित्र कहते हैं ।
सर्व सावध व्यापार का त्याग करना एवं निरवद्य व्यापार का सेवन करना सामायिक चारित्र है।
यों तो चारित्र के सभी भेद सावद्य योग विरतिरूप हैं। इस लिये सामान्यतः सामायिक ही हैं । किन्तु चारित्र के दमरे भेदों के साथ छेद आदि विशेषण होने से नाम और अर्थ से भिन्न भिन्न बताये गये हैं। छेद आदि विशेषणों के न होने से पहले चारित्र का नाम सामान्य रूप से सामायिक ही दिया गया है।