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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह . (३) जीविताशंसा प्रयोगः-बहु परिवार एवं लोक प्रशंसा
आदि कारणों से अधिक जीवित रहने की इच्छा करना
जीविताशंसा प्रयोग है। (४) मरणाशंसा प्रयोगः-अनशन करने पर प्रशंसा आदि
न देख कर या चुधा आदि कष्ट से पीड़ित होकर शीघ्र
मरने की इच्छा करना मरणाशंसा प्रयोग है। (५) कामभोगाशंसा प्रयोग-मनुष्य एवं देवता सम्बन्धी काम
अर्थात् शब्द, रूप एवं भोग अर्थात् गन्ध, रस, स्पर्श की इच्छा करना कामभोगाशंसा प्रयोग है।
. (उपासक दशांग)
(धर्म संग्रह अधिकार २ पृष्ठ २३१) ३१४--श्रावक के पाँच अभिगम-उपाश्रय की सीमा में प्रवेश
करते ही श्रावक को पाँच अभिगमों का पालन करना चाहिये । साधु जी के सन्मुख जाते समय पाले जाने वाले
नियम अभिगम कहलाते हैं। वे ये हैं (१) सचित्तद्रव्य, जैसे पुष्प ताम्बूल आदि का त्याग करना । ( २ ) अचित्त द्रव्य, जैसे:-वस्त्र वगैरह मर्यादित करना । (३) एक पट वाले दुपट्टे का उत्तरासंग करना। ( ४ ) मुनिराज के दृष्टि गोचर होते ही हाथ जोड़ना । (५) मन को एकाग्र करना ।
(भगवती शतक : उद्देशा ५) । ३१५ चारित्र की व्याख्या और भेदः-चारित्र मोहनीय कर्म
के क्षय, उपशम या क्षयोपशम से होने वाले विरति परिणाम को चारित्र कहते है।