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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह कहे गये हैं। भाव से विरति का बाधक होने से पांचवां अतिचार है।
(उपासक दशांग) ३१२-अतिथि संविभाग व्रत के पांच अतिचार:
(१) सचित्त निक्षेप (२) सचित्तपिधान । (३) कालातिक्रम (४) परव्यपदेश ।
(५) मत्सरिता। ( ) मचित्त निक्षेपः साधु को नहीं देने की बुद्धि से कपट पूर्वक
सचित्त धान्य आदि पर अचित्त अन्नादि का रखना सचित्त
निक्षेप अतिचार है। (२) सचित्त पिधानः-साधु को नहीं देने की बुद्धि से कपट
पूर्वक अचित्त अन्नादि को सचित्त फल आदि से ढंकना
मचित्तपिधान अतिचार है। (३) कालातिक्रमः-उचित भिक्षा काल का अतिक्रमण करना
कालातिक्रम अतिचार है । काल के अतिक्रम हो जाने पर यह सोच कर दान के लिए उद्यत होना कि अब साधु जी
आहार तो लेंगे नहीं पर वह जानेंगे कि यह श्रावक
दातार है। (४) पर व्यपदेशः--आहारादि अपना होने पर भी न देने की
बुद्धि से उसे दूसरे का बताना परव्यपदेश अतिचार है। (५) मत्सरिता:-अमुक पुरुष ने दान दिया है । क्या मैं उससे
कृपण या हीन हूँ ? इस प्रकार ईर्षाभाव से दान देने में प्रवृत्ति करना मत्सरिता अतिचार है ।