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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला होकर असावधानी से निरीक्षण करना अप्रत्युपेक्षित दुष्प्रत्यु
पेक्षित शय्या संस्तारक अतिचार है। (२) अप्रमार्जित दुष्प्रर्मार्जित शय्या संस्तारकः-शय्या संस्तारक
(संथारे) को न पूंजना वा अनुपयोग पूर्वक असावधानी से पूंजना अप्रमार्जित दुष्प्रमार्जित शय्या संस्तारक अति
चार है। (३) अप्रत्युपेक्षित दुष्प्रत्युपेक्षित उच्चार प्रस्रवण भूमिः-मल, मूत्र
आदि परिठवने के स्थण्डिल को न देखना या अनुपयोग पूर्वक असावधानी से देखना अप्रत्युपेक्षित दुष्प्रत्युपेक्षित
उच्चार प्रस्रवण भूमि अतिचार है। (४) अप्रमार्जित दुष्प्रमार्जित उच्चार प्रस्रवण भूमिः-मल, मूत्र
आदि परिठवने के स्थण्डिल को न पूंजना या विना उपयोग असावधानी से पूंजना अप्रमार्जित दुष्प्रमार्जित उच्चार
प्रस्रवण भूमि अतिचार है। (५) पौषधोपवास का सम्यक् अपालन:-आगमोक्त विधि से
स्थिर चित्त होकर पौषधोपवास का पालन न करना, पौषध में आहार, शरीर शुश्रूषा, अब्रह्म तथा सावध व्यापार की अभिलाषा करना पौषधोपवास का सम्यक अपालन अतिचार है।
व्रती के प्रमादी होने से पहले के चार अतिचार हैं। अतिचारोक्त शय्या संस्तारक तथा उच्चार प्रस्रवण भूमि का उपभोग करना अतिचार का कारण होने से ये अतिचार