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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला (३) अपक्क औषधि भक्षणः-अग्नि में विना पकी हुई शालि
आदि औषधि का भक्षण करना अपक्क औषधि भक्षण
अतिचार है । अनुपयोग से खाने में यह अतिचार है। (४) दुष्पक औषधि भक्षणः-दुष्पक्व (बुरी तरह से पकाई हुई)
अग्नि में अधपकी औषधि का पकी हुई जान कर भक्षण करना दुष्पक्व औपधि भक्षण अतिचार है। ____ अपक्क औषधि भक्षण एवं दुष्पक्व औषधि भक्षण अतिचार भी सर्वथा सचित्त त्यागी के लिए है। सचित्त औषधि की मर्यादा वाले के लिए तो मर्यादोपरान्त अपक्क एवं दुष्पक्व औषधि का भक्षण करना अति
चार है। (५) तुच्छौषधि भक्षण-तुच्छ अर्थात् असार औषधियें
जैसे कच्ची मूंगफली वगैरह को खाना तुच्छौषधि भक्षण अतिचार है । इन्हें खाने में बड़ी विराधना होती है और अल्प तृप्ति होती है । इस लिए विवेकशील अचित्तभोजी श्रावक को उन्हें अचित्त करके भी न खाना चाहिए । वैसा करने पर भी वह अतिचार का भागी है।।
(उपासक दशांग सूत्र ।
(प्रवचनसारोद्धार गाथा २८१) __ भोजन की अपेक्षा से ये पाँच अतिचार हैं । भोगोपभोग सामग्री की प्राप्ति के साधनधृत द्रव्य के उपार्जन के लिये भी श्रावक कर्म अर्थात् वृत्ति व्यापार की मयार्दा करता है । वृत्ति-व्यापार की अपेक्षा श्रावक को खर कर्म अर्थात् कठोर कर्म का त्याग करना चाहिये ।