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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह ३०७--उपभोग-परिभोग परिमाण व्रत के पाँच अतिचार:
(१) सचित्ताहार (२) सचित्त प्रतिबद्धाहार । (३) अपक्क औषधि भक्षण (४) दुष्पक्व औषधि भक्षण ।
(५) तुच्छ औषधि भक्षण । (१) सचिताहार-सचित त्यागी श्रावक का सचित वस्तु जैसे
नमक, पृथ्वी, पानी, वनस्पति इत्यादि का आहार करना एवं सचित्त वस्तु का परिमाण करने वाले श्रावक का परिमाणोपरान्त सचित्त वस्तु का आहार करना मचित्ताहार है। विना जाने उपरोक्त रीति से सचित्ताहार करना अतिचार है और जान बूझ कर इसका सेवन करना
अनाचार है। (२) सचित प्रतिवद्धाहारः-सचित वृक्षादि से सम्बद्ध
अचित्त गोंद या पक्के फल वगैरह खाना अथवा सचित्त वीज से सम्बद्ध अचेतन खजूर वगैरह का खाना या बीज सहित फल को, यह सोच कर कि इसमें अचित्त अंश खा लूँगा और सचित्त वीजादि अंश को फेंक दंगा, खाना सचित्त प्रतिबद्धाहार अतिचार है।
सर्वथा सचित्त त्यागी श्रावक के लिए सचित्त वस्तु से छूती हुई किसी भी अचित्त वस्तु को खाना अतिचार है एवं जिसने सचित्त की मर्यादा कर रखी है उसके लिए मर्यादा उपरान्त सचित्त वस्तु से संघट्टा वाली (सम्बन्ध रखने वाली) अचित्त वस्तु को खाना अतिचार है। व्रत की अपेक्षा होने से यह अतिचार है।