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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
के परिमाण को उल्लंघन करना ऊर्ध्व दिशा परिमाणातिक्रम तिचार है ।
(२) अधोदिशा परिमाणातिक्रमः - - अधः अर्थात् नीची दिशा का परिमाण उल्लंघन करना अधो दिशा परिमाणातिक्रम तिचार है।
(३) तिर्यदिशा परिमाणातिक्रमः -- तिळीं दिशा का परिमाण उल्लंघन करना तिर्यदिशा परिमाणातिक्रम अतिचार है
अनुपयोग यानी अमावधानी से ऊर्ध्व, अधः और तिर्यक दिशा की मर्यादा का उल्लंघन करना अतिचार है जान बूझ कर परिमाण से आगे जाना अनाचार सेवन है । (४) क्षेत्र वृद्धि: - - एक दिशा का परिमाण घटा कर दूसरी दिशा का परिमाण बढ़ा देना क्षेत्र वृद्धि अतिचार है । इस प्रकार क्षेत्र वृद्धि से दोनों दिशाओं के परिमाण का योग वही रहता है । इस लिए व्रत का पालन ही होता है । इस प्रकार व्रत की अपेक्षा होने से यह अतिचार है । (५) स्मृत्यन्तर्धान (स्मृतिभ्रंश) : - ग्रहण किए हुए परिमाण का स्मरण न रहना स्मृतिभ्रंश अतिचार है । जैसे किसी ने पूर्व दिशा में १०० योजन की मर्यादा कर रखी है । परन्तु पूर्व दिशा में चलते समय उसे मर्यादा याद न रही । वह सोचने लगा कि मैंने पूर्व दिशा में ५० योजन की मर्यादा की है या १०० योजन की ? इस प्रकार स्मृति न रहने से सन्देह पड़ने पर पचाम योजन से भी आगे जाना अतिचार है ।
( उपासक दशांग )
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