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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
३०३ अतिचार है। यह भी अनुपयोग एवं अतिक्रम आदि की अपेक्षा से अतिचार है।
अथवा:नियमित कुष्य से अधिक संख्या में कुप्य की प्राप्ति होने पर दो दो को मिला कर वस्तुओं को बड़ी करा देना और नियमित संख्या कायम रखना कुप्य प्रमाणातिक्रम अतिचार है।
अथवाःनियत काल के लिये कुप्य परिमाण वाले श्रावक का मर्यादित कुप्य से अधिक कुप्य की प्राप्ति होने पर उसी समय ग्रहण न करते हुए सामने वाले से यह कहना कि अमुक समय बीत जाने पर मैं तुमसे यह कुप्य ले
लूँगा। तुम और किसी को न देना । यह कुप्य प्रमाणातिक्रम अतिचार है।
(उपासक दशांग सूत्र) (हरिभद्रीय आवश्यक पृष्ठ ८२६)
(धर्म संग्रह अधिकार २ पृष्ठ १०५ से १०७) ३०६-दिशा परिणाम व्रत के पांच अतिचार:
(१) उर्ध्व दिशा परिमाणातिक्रम । (२) अधो दिशा परिमाणातिक्रम। (३) तिर्यक दिशा परिमाणातिक्रम । (४) क्षेत्र वृद्धि ।
(५) स्मृत्यन्तर्धान (स्मृतिभ्रंश)। (१) ऊर्ध्वदिशा परिमाणातिक्रमः-ऊर्ध्व अर्थात् ऊंची दिशा