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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला धान्य की प्राप्ति होने पर उसे स्वीकार कर लेना परन्तु व्रत-भङ्ग के डर से उन्हें, धान्यादि के बिक जाने पर ले लूँगा यह सोच कर, दुसरे के घर पर रहने देना धन-धान्य प्रमाणातिक्रम अतिचार है। अथवा परिमित काल की मर्यादा वाले श्रावक के मर्यादित धन-धान्य से अधिक की प्राप्ति होने पर उसे स्वीकार कर लेना और मर्यादा की समाप्ति पर्यन्त दूसरे के यहां रख देना धन-धान्य
प्रमाणातिक्रम अतिचार है। (४) द्विपद चतुष्पद प्रमाणातिक्रमः--द्विपद सन्तान, स्त्री, दास
दासी, तोता, मैंना वगैरह तथा चतुष्पद-गाय, घोड़ा, ऊँट, हाथी आदि के परिमाण का उल्लंघन करना द्विपद चतुष्पद-प्रमाणातिक्रम अतिचार है। अनुपयोग एवं अतिक्रम आदि की अपेक्षा से यह अतिचार है । अथवा एक साल आदि नियमित काल के लिये द्विपद-चतुष्पद की मर्यादा वाले श्रावक का यह सोच कर कि मर्यादा के बीच में गाय, घोड़ी आदि के बच्चा होने से मेरा व्रत भङ्ग हो जायगा। इस लिये नियत समय बीत जाने पर गर्भ धारण करवाना, जिससे कि मर्यादा का काल बीत जाने पर ही
उनके बच्चे हों, द्विपद चतुष्पद प्रमाणातिक्रम अतिचार है। (५) कुप्य प्रमाणातिक्रम-कुप्य सोने चांदी के सिवा अन्य
वस्तु, आसन, शयन, वस्त्र, कम्बल, वर्तन वगैरह घर के सामान की मर्यादा का अतिक्रमण करना कुप्य प्रमाणातिक्रम