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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह (३) विरुद्धराज्यातिक्रम (४) कूट तुला कूट मान
(५) तत्प्रतिरूपक व्यवहार । (१) स्तेनाहृतः-चोर की चुराई हुई वस्तु को बहुमूल्य समझ
कर लोभ वश उसे खरीदना या यों ही छिपा कर ले लेना
स्तेनाहृत अतिचार है। (२) स्तेन प्रयोगः-चोरों को चोरी के लिए प्रेरणा करना,
उन्हें चोरी के उपकरण देना या वेचना अथवा चोर की महायता करना, “तुम्हारे पास खाना नहीं है तो मैं देता हूँ तुम्हारी चुराई हुई वस्तु को कोई बेचने वाला नहीं है तो मैं बेच दूँगा" इत्यादि वचनों से चोर को चोरी में उत्सा
हित करना स्तेन प्रयोग है। (३) विरुद्ध राज्यातिक्रमः-शत्रु राजाओं के राज्य में आना
जाना विरुद्ध राज्यातिक्रम अतिचार है । क्योंकि विरोध के समय शत्रु राजाओं द्वारा राज्य में प्रवेश करने की मनाई
होती है। (४) कूट तुला कूट मानः-झूठा अर्थात् हीनाधिक तोल और
माप रखना, परिमाण से बड़े तोल और माप से वस्तु लेना और छोटे तोल और माप से वस्तु वेचना कूट तुला कूट
मान अतिचार है। (५) तत्प्रतिरूपक व्यवहारः बहुमूल्य बढ़िया वस्तु में अल्प
मूल्य वाली घटिया वस्तु, जो उसी के सदृश है अर्थात् उसी रूप, रंग की है और उसमें खपने वाली है, मिलाकर वेचना या असली सरीखी नकली (बनावटी) वस्तु को ही असली के नाम से बेचना तत्प्रतिरूपक व्यवहार है।