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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला पांचों अतिचारों में वर्णित क्रियाएं चोरी के नाम से न कही जाने पर भी चोरी के बराबर है । इनका करने वाला गज्य के द्वारा भी अपराधी माना जाकर दण्ड का भागी होता है । इस लिए इन्हें जान बूझ कर करना तो व्रत भङ्ग ही है। विना विचारे अनुपयोग पूर्वक करने से, या व्रत की अपेक्षा रख कर करने से या अतिक्रमादि की अपेक्षा ये अतिचार हैं।
(उपासक दशांग सूत्र) (हरिभद्रीय आवश्यक पृष्ठ ८२२)
(धर्म संग्रह अधिकार २ पृष्ठ १०२-१०३) ३०४-स्वदार मन्तोष बन के पाँच अतिचार:
(१) इत्वरिका परिगृहीता गमन (३) अपरिगृहीता गमन । (३) अनङ्ग क्रीड़ा (४) पर विवाह करण ।
(५) काम भोग तीव्राभिलाप । (१) इत्वरिका परिगृहीतागमन:-भाड़ा देकर कुछ काल के
लिए अपने आधीन की हुई स्त्री से गमन करना । इत्वरिका
परिगृहीतागमन अतिचार है। (२) अपरिगृहीतागमन:--विवाहित पत्नी के सिवा शेष वेश्या,
अनाथ, कन्या, विधवा, कुलवधू आदि से गमन करना, अपरिगृहीता गमन अतिचार है। ___इत्वरिका परिगृहीता और अपरिगृहीता से गमन करने का संकल्प, एवं तत्सम्बन्धी उपाय,आलाप मेलापादि अतिक्रम व्यतिक्रम की अपेक्षा ये दोनों अतिचार हैं।