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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
अथवाःकोई मन्दिग्ध ( सन्देह वाला) व्यक्ति सन्देह निवारण के लिये आवे, उसे उत्तर में अयथार्थ स्वरूप कहना मृषोपदेश है। अथवा विवाह में स्वयं या दूसरे से किमी को अभिमंधान ( मम्बन्ध जोड़ने के उपाय ) का उपदेश देना या दिलाना मृपोपदेश है । अथवा व्रत रक्षण की बुद्धि से दूसरे के वृत्तान्त को कह कर मृपा उपदेश
देना मृपोपदेश है। (५) कूट लेखकरण-कूट अर्थात् झूटा लेख लिखना कूट लेख
करण अतिचार है । जाली अर्थात् नकली लेख, दस्तावेज, मोहर और दूसरे के हस्ताक्षर आदि बनाना कूट लेख करण में शामिल है। प्रमाद और अविवेक (अज्ञान) से ऐसा करना अतिचार है । व्रत का पूरा आशय न समझ कर यह सोचना कि मैंने झूठ बोलने का त्याग किया था यह तो झूठा लेख है । मृपावाद तो नहीं है । व्रत की अपेक्षा होने से और अविवेक की वजह से यह अतिचार है । जान बूझ कर कूट लेख लिखना अनाचार है ।
(उपासक दशांग सूत्र) (धर्मसंग्रह अधिकार २ पृष्ठ १०१-१०२)
(हरिभद्रीय आवश्यक पृष्ठ ८२१-८२२) ३०३-अचौर्याणुव्रत (स्यूल अदप्तादान विरमण व्रत ) के
पाँच अतिचार:. स्थूल अदत्तादान विरमण रूप तीसरे अणुव्रत के पाँच अतिचार हैं:(१) स्तेनाहत (२) स्तेन प्रयोग।