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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह (३) स्वदार मन्त्र भेद-स्वस्त्री के साथ एकान्त में हुई विश्वस्त मन्त्रणा-(वार्तालाप) का दूसरे से कहना स्वदारमन्त्र भेद है।
अथवाःविश्वास करने वाली स्त्री, मित्र आदि की गुप्त मन्त्रणा का प्रकाश करना स्वदार मन्त्र भेद है ।
यद्यपि वक्ता पुरुष स्त्री या मित्र के साथ हुई सत्य मन्त्रणा को ही कहता है परन्तु अप्रकाश्य मन्त्रणा के प्रकाशित हो जाने से लज्जा एवं संकोच वश स्त्री, मित्र आदि आत्मघात कर सकते हैं या जिसके आगे उक्त मन्त्रणा प्रकाशित की गई है उसी का घात कर सकते हैं। इस प्रकार अनर्थ परम्परा का कारण होने से
वास्तव में यह त्याज्य ही है। (४) मृषोपदेश-विना विचारे, अनुपयोग से या किसी
बहाने से दूसरों को असत्य उपदेश देना मिथ्योपदेश है। जैसे हम लोगों ने ऐसा ऐसा झूठ कह कर अमुक व्यक्ति को हरा दिया था इत्यादि कह कर दूसरों को असत्य वचन कहने में प्रेरित करना।
अथवाःअमन्य उपदेश देना मृपोपदेश है। सत्यव्रतधारी पुरुष के लिये पर पीडाकारी वचन कहना भी असत्य है। इस लिए प्रमाद से पर पीडाकारी उपदेश देना भी मृषोपदेश अतिचार है। जैसे ऊँट, गधे वगैरह को चलाना चाहिये, चोरों को मारना चाहिये । आदि ।