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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाल औदारिक शरीर धारी अर्थात् मनुष्य तियञ्च के शरीर को धारण करने वाली स्त्रियों के साथ एक करण एक योग से ( अर्थात् काय से सेवन नहीं करूँगा इस प्रकार ) तथा वैक्रिय शरीरधारी अर्थात् देव शरीरधारी स्त्रियों के साथ दो करण तीन योग से मैथुन सेवन का त्याग करना
स्वदार-मन्तोष नामक चौथा अणुव्रत है। (५) इच्छा-परिमाण:-(परिग्रह परिमाण ) क्षेत्र, वास्तु,
धन, धान्य, हिरण्य, सुवर्ण, द्विपद, चतुष्पद एवं कुप्य ( मोने चांदी के सिवा कामा, ताँबा, पीतल आदि के पात्र तथा अन्य घर का सामान ) इन नव प्रकार के परिग्रह की मर्यादा करना एवं मर्यादा उपरान्त परिग्रह का एक करण तीन योग से त्याग करना इच्छा-परिमाण व्रत है । तृष्णा, मूळ कम कर सन्तोष रत रहना ही इस त का मुख्य उद्देश्य है। हरिभद्रीय आवश्यक पृष्ठ ८१७ से ८२६)
(ठाणांग ५ सूत्र ३८६)
(उपासक दशांग)
(धर्म संग्रह अधिकार २) ३०१-अहिंमा अणुव्रत (स्थूल प्राणातिपात-विरमण व्रत ) के पांच अतिचार:
वर्जित कार्य को करने का विचार करना अतिक्रम है। कार्य-पूर्ति यानि व्रत भङ्ग के लिए साधन एकत्रित करना व्यतिक्रम है। व्रतभङ्ग की पूरी तैयारी है परन्तु जब तक व्रत भङ्ग नहीं हुआ है तब तक अतिचार हैं। अथवा