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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह मृषावाद है । अविश्वास आदि के कारण स्वरूप इस स्थूल मृषावाद का दो करण तीन योग से त्याग करना स्थल
मृषावाद-त्याग रूप द्वितीय अणुव्रत है। स्यूल मृषावाद पाँच प्रकार का है
(१) कन्या-वर सम्बन्धी झूठ । (२) गाय, भैंस आदि पशु सम्बन्धी झूठ । (३) भूमि सम्बन्धी झूठ। (४) किसी की धरोहर दबाना या उसके सम्बन्ध में झूठ
बोलना। (५) झूठी गवाही देना । (३) स्थूल अदत्तादान का त्याग-क्षेत्रादि में सावधानी से रखी हुई या अमावधानी से पड़ी हुई या भूली हुई किमी सचित्त, अचित्त म्यूल वस्तु को, जिसे लेने से . चोरी का अपराध लग सकता हो अथवा दुष्ट अध्यवसाय पूर्वक साधारण वस्तु को स्वामी की आज्ञा विना लेना स्थूल अदत्तादान है। खात खनना, गांठ खोल कर चीज निकालना, जेब काटना, दूसरे के ताले को विना आज्ञा चाबी लगा कर खोलना, मार्ग में चलते हुए को लूटना, स्वामी का पता होते हुए भी किसी पड़ी वस्तु को ले लेना आदि स्थूल अदत्तादान में शामिल हैं । ऐसे स्थूल अदत्तादान का दो करण तीन योग से त्याग
करना स्थूल अदत्तादान त्याग रूप तृतीय अणुव्रत है । (४) स्वदार सन्तोष:-स्व-स्त्री अर्थात् अपने साथ ब्याही
हुई स्त्री में सन्तोष करना । विवाहित पत्नी के सिवा शेष