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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला
(५) अपरिग्रह - परिग्रह का त्याग करना, ममता मूर्च्छा से रहित होना या शौच मन्तोष का सेवन करना अपरिग्रह है । ( प्रश्न व्याकरण धर्म द्वार )
३०० -- अणुव्रत पाँच:
महाव्रत की अपेक्षा छोटा व्रत अर्थात् एक देश त्याग का नियम अणुव्रत है । इसे शीलव्रत भी कहते हैं
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अणुव्रत:
सर्व विरत साधु की अपेक्षा अणु अर्थात् थोड़े गुण वाले ( श्रावक) के व्रत अणुव्रत कहलाते हैं ।
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श्रावक के स्थूल प्राणातिपात आदि न्याग रूप व्रत व्रत हैं।
व्रत पाँच हैं:
(१) स्थूल प्राणातिपात का त्याग ।
(२) स्थूल मृपावाद का त्याग ।
(३) स्थूल अदत्तादान का त्याग । (४) स्वदार सन्तोष |
(५) इच्छा - परिमाण ।
(१) स्थूल प्राणातिपात का त्याग - स्वशरीर में पीड़ाकारी, पराधी तथा सापेक्ष निरपराधी के सिवा शेष द्वीन्द्रिय यदि त्रस जीवों की संकल्प पूर्वक हिंसा का दो करण तीन योग से त्याग करना स्थूल प्राणातिपात त्याग रूप प्रथम त है ।
(२) स्थूल मृषावाद का त्याग -- दुष्ट अध्यवसाय पूर्वक तथा म्यूल वस्तु विषयक बोला जाने वाला असत्य-झूठ, स्थूल