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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
अथवा:-- जैसे:-जल में रही हुई नाव में निरन्तर जल प्रवेश कराने वाले छिद्रों को किसी द्रव्य से रोक देने पर, पानी आना रुक जाता है। उसी प्रकार जीव रूपी नाव में कर्म रूपी जल प्रवेश कराने वाले इन्द्रियादि रूप छिद्रों को सम्यक् प्रकार से संयम, तप आदि के द्वारा रोकने से प्रात्मा में कर्म का प्रवेश नहीं होता। नाव में पानी का रुक जाना द्रव्य संबर है और आत्मा में कर्मों के आगमन को रोक देना
भाव संवर है। संवर के पाँच मेदः
(१) सम्यक्त्व । (२) विरति । (३) अप्रमाद।
(४) अकषाय। (५) अयोग (शुभयोग)।
(प्रश्न व्याकरण)
(ठाणांग ५ सूत्र ४१८) (१) श्रोत्रेन्द्रिय संवर। (२) चक्षुरिन्द्रिय संवर । (३) घ्राणेन्द्रिय संवर। (४) रसनेन्द्रिय संवर । (५) स्पर्शनेन्द्रिय संवर।
(ठाणांग ५ सूत्र ४२७) (१) अहिंसा। (२) अमृषा। (३) अचौर्य । (४) अमैथुन ।
(५) अपरिग्रह। (१) सम्यक्त्व-सुदेव, सुगुरु और सुधर्म में विश्वास होना
सम्यक्त्व है।