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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संपह २८५ एकेन्द्रिय जीवों का समारम्भ न करने वाले के पांच प्रकार का संयम होता है। (१) पृथ्वीकाय संयम (२) अप्काय संयम। (३) तेजस्काय संयम (४) वायु काय संयम । (५) वनस्पतिकाय संयम । पञ्चेन्द्रिय जीवों का समारम्भ न करने वाला पाँच इन्द्रियों का व्याघात नहीं करता । इस लिए उसका पाँच प्रकार का मंयम होता है। (१) श्रोत्रेन्द्रिय संयम (२) चक्षुरिन्द्रिय संयम । (३) घाणेन्द्रिय संयम (४) रसनेन्द्रिय संयम । (५) स्पर्शनेन्द्रिय संयम है। ___ सर्व प्राण, भूत, जीव और सत्त्व का समारम्भ न करने वाले के पांच प्रकार का संयम होता है। (१) एकेन्द्रिय संयम (२) द्वीन्द्रिय संयम । (३) त्रीन्द्रिय संयम (४) चतुरिन्द्रिय संयम । (५) पञ्वेन्द्रिय संयम। (ठाणांग ५ सूत्र ४२६ से ४३१) २६६ पाँच संवरः कर्म बन्ध के कारण प्राणातिपात आदि जिससे रोके जाय वह संवर है। अथवा:जीव रूपी तालाब में आते हुए कर्म रूप पानी का रुक जाना संवर कहलाता है।
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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